इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, June 30, 2012

अजनबी ,जो साथ चल रहा है....

कहते हैं हर रिश्ता मोहब्बत पर टिका होता है .....मगर कुछ रिश्तों की आदत पड़ जाती है........फिर उनमे प्यार हो न हो वे टूटते नहीं.......एक दूसरे की कोई खास ज़रूरत बेशक न हो मगर इक-दूजे बिना काम भी नहीं चलता.......बेशक ढेरों शिकायतें हो एक दूसरे से,मगर हैं संग संग.........
साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं फिर भी साथ हैं,साथ की आदत जो है !!!!! 
कहीं ये आदत ही तो प्यार नहीं????
   
  कैसा अजीब शख्स है वो,  
        पुकारता है मुझे
          मेरे नाम से   
     और कहता है कि
      पहचानता नहीं !
        जानती हूँ कि
     वो जानता है मुझे,
    और ये भी सच है कि
      पहचानता नहीं...
          तभी तो 
     बेपरवाह है मुझसे
   कोई फ़िक्र नहीं मेरी...
         कहती हूँ
    छोड़ दे मेरा साथ...
          मगर
    ये बात भी मेरी
     वो कमबख्त
     मानता नहीं...                          

(भीतर ही भीतर डरती भी  हूँ कि कहीं मान न ले...)
       -अनु                                       

Monday, June 25, 2012

तारों की घर वापसी

मेरी यह रचना भास्कर भूमि में.http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-06-26&id=8&city=Rajnandgaon


जानते हो !!
मखमली घास पर 
बिखरा है जो 
हरसिंगार 
वो फूल नहीं है,
वो तारे हैं..
जिन्हें आसमान  ने 
पिछली रात 
घर निकाला दे डाला है.
ज़रूर झगड़े होंगे 
किसी बात पर......


रात भर रोते रहे वो तारे
और उनके आंसुओं को 
तुमने ओस समझ कर 
रौंद डाला.......


चांदी का थाल लिए 
उन फूलों को जो चुन रही है
वो कोई और नहीं..
वो चाँद है !!!
पहचानते नहीं क्या????
तारों की चिरौरी कर
उन्हें मना कर ले जाने 
धरती पर उतरा  है चाँद...


तारों बिना आसमान 
सूना जो हो गया
चाँद अकेला जो हो गया ....


-अनु 





Friday, June 22, 2012

सन्नाटा....

सूना रास्ता ये
जाने  किधर को जाता है...
सीधी  सड़क है
आसान  सी राह दिखती है..
मगर कोई राहगीर नहीं!!
सन्नाटा सा पसरा है...
अक्सर कुछ उदास चेहरे
वहाँ से आते दिखते,
खाली हाथ
आँखों में लाल डोरे
शायद राख से सने हाथ...
कहते थे,
विदा  कर आये किसी को...
फिर ना जाने क्यों 
लोग कहते हैं
कि ये सड़क कहीं नहीं जाती??


-अनु 

Tuesday, June 19, 2012

गुड़ सी जिंदगी !!!

जिंदगी अच्छी हो या बुरी...छोटी हो या बड़ी......जीते सब हैं.....किसी तरह गुज़ार भी देते हैं.....कोई हँसते हँसते ,कोई रोते बिसूरते....
अब जिंदगी से शिकायत कैसे न हो....तरह तरह के खेल जो खेलती हैं......
काश कि जिंदगी 
हरसिंगार/प्यार,
चाँद/तारा,
हरी घांस/नदी,
खुशबु/गीत,
पंछी/आकाश,
इन्द्रधनुष/गुलमोहर,
हंसी/खुशी .................................यानि एक कविता की तरह होती......बहती एक प्रवाह में...लयबद्ध......
आखिर है क्या जिन्दगी????

यूँ  कभी तितली सी मिलती है जिंदगी
दामन में ढेरों तारे,सिलती है जिंदगी.


दे दी जो ज़माने ने,कड़वाहट गर हमें
तब जुबां पे गुड़ सी घुलती है जिंदगी.


जो कर चले इस पर,भूले से हम यकीं
धूप में बारिश सा छलती है जिंदगी.


साथ हो अगर कोई,प्यारा सा हमसफ़र
थम जाती और रुक-रुक चलती है जिंदगी.


हर दिन नया सवेरा,नयी राह है यहाँ
कभी दौड़ती,गिरती,सम्हालती है जिंदगी.


शतरंज की बिसात पर बिछे  तुम और हम
जब चाहे शह और मात देती है जिंदगी.

काँच का खिलौना होता है दिल सनम
गर टूटा तो बच्चे सा मचलती है जिंदगी.

(so handle with care...its your life.)
-अनु 



Sunday, June 17, 2012

बाबा की बिटिया


मैं अपने बाबा  की
दुलारी बेटी हूँ
 

मेरी आधी उम्र गुज़र गयी,  मगर उनके लिए अब भी छोटी हूँ...

बचपन से थामी उँगलियाँ
अब भी थाम रखी हैं...
पहले पकड़ उनकी थी...
अब मैंने  जकड रखी हैं.

तब उन्होंने सिखाया 
पैरों पर खड़ा होना ..
चलना...
अब मैं टोका करती  हूँ
कि  वो सम्हल कर  चलें..

तब उन्होंने मेरे खान-पान का खूब ख्याल रखा.
अब मैं ख्याल रखती हूँ
कि वो खूब न खाएं...

तब जब कभी मुझे चोट लगी तो
वो अस्पताल ले दौड़े ..
अब जब उन्हें अस्पताल ले दौड़ी
तो मुझे चोट लगी...

जब कभी उनका दिल दुखाया
तब खूब रोई...
और जब जब मैं रोई..
जानती हूँ,उनका दिल खूब दुखा .....


-अनु (the first poem i ever wrote)

Friday, June 15, 2012

महामुक्ति

हे प्रभु! 
मुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से.
दे दो कष्ट अनेक
जिससे बह जाये
अहं मेरा
अश्रुओं की धार से....


मुक्ति दो मुझे
जीवन की आपधापी से
बावला कर दो मुझे
बिसरा दूँ सबको...
सूझे ना कुछ मुझे..
सिवा तेरे..


डाल दो बेडियाँ
मेरे पांव में..
कुछ अवरोध  लगे
इस  द्रुतगामी जीवन पर..
और दे दो मुझे तुम पंख...
कि मैं उड़ कर
पहुँच सकूँ तुम तक...


शांत करो ये अनबुझ क्षुधा
ये लालसा,मोह माया..
छीन लो सब
जो 'मेरा' है
आँखों को स्वप्न से रीता कर दो..
जिससे मैं भर लूँ
तुम्हें अपने नैनों में
धर लूँ ह्रदय में..


हे प्रभु!
मन चैतन्य कर दो..
मुझे अपने होने का 
बोध करा दो..
मुझे मुक्त करा दो.... 


-अनु 

Wednesday, June 13, 2012

तेरे जाने और आने के बीच....

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हर दिल की तरह मेरा दिल भी ये चाहता था  कि गर उसे मुझसे मोहब्बत नहीं तो किसी और से भी न हो ........वो चला जाए बेशक मुझे छोड़ कर...मगर किसी और के पहलू में नहीं........
जी लूंगी बिना उसके मगर वो न जी पाए मेरे बगैर......
बड़ा स्वार्थी होता है दिल.....या मोहब्बत बना देती है उसे  तंगदिल ???
मगर क्या करें...जब तक कस के न पकडें मोहब्बत ठहरती ही नहीं......और पकड़ पक्की हो तो जाकर भी लौट आती है....
उसके जाने और लौट के आने के बीच न जाने कौन कौन से ख़याल आये और गुज़र गए.....
कुछ ख़याल यूँ ही ठहर गए मेरी डायरी के पन्नों में............

तनहा थी इस कदर
साँसे भी सुन लेती अपनी
      जाने क्यूँ जुदा हुए थे हम
      यूँ अक्सर मिलते-मिलते

पतझड़ आकर ठहर गया
रंग भी फीके पड़ गए
      जीवन बगिया यूँ सूखी
      मुरझायी खिलते-खिलते

थामा हाथ गैरों का
यूँ हुए थे तुम पराये
     ख़ाक हुआ था दिल मेरा
     डाह से जलते-जलते

मोहब्बत मेरी पाते कहाँ
मुझसे दूर जाते  कहाँ
     जानती थी थक जाओगे एक दिन
     तुम  मुझको छलते-छलते

अब कितना सुकून मिला है
तेरे साये को करीब पाकर
           थक गयी थी धूप में मैं
           लड़खड़ाते चलते-चलते...........

-अनु 




Monday, June 11, 2012

मेरे गीत

     "मेरे गीतों में"
मेरे ह्रदय  की भावनाएं हैं,
पूरी और अधूरी कामनाएं हैं...

बच्चों सी हँसी ठिठोली है
कुछ खट्टी मीठी बोली है...

रांझे-हीर सा प्यार है
मेरे मन का हरसिंगार है...

कविता  का सम्मान है
मेरा धर्म और ईमान है...

पंछियों की चहचहाहट है
तेरे आने की हल्की आहट  है...

आँखों  में कटती रात है
कभी खत्म ना हो वो बात है...

कभी टूटा कोई सपना है
जैसे रूठा कोई अपना है...

अतीत  का हर एक किस्सा  है
जीवन का अटूट हिस्सा है...

बस एक ज़रा सी फ़िक्र है
कि तुम और तुम्हारा ज़िक्र है
मेरे गीतों में....


-अनु 

Friday, June 8, 2012

एक ख्वाब-जलता हुआ सा.....

भास्कर भूमि में प्रकाशित  http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-06-11&id=8&city=Rajnandgaon

रात मैंने ख्वाब में
सूरज को देखा था.
जल उठा था मेरा ख्वाब,
मेरी बंद आँखों में...
मेरे आंसुओं की नमी भी 
बचा न सकी उसे जलने से....
अब कैसे बीनूं वो अधजले टुकड़े!!
कैसे सृजन करूँ एक नये ख्वाब का,
जिससे देख सकूँ 
एक चाँद अबकी बार....
एक पूरा चाँद....
जो भर दे शीतलता
मेरी धधकती आँखों में,
शांत कर दे उस आग को 
जो जला गया सूरज, मेरे सीने में...
इसके  पहले कि
इस धुएँ से मेरा दम घुट जाए...
काश!! मुझे नींद आ जाये....
और आ जाये चाँद 
मेरे ख़्वाबों में..
जी जाऊं मैं
     मेरे ख़्वाबों में......

-अनु 


Tuesday, June 5, 2012

सच को ठगता झूठ

published in bhaskar bhoomi http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-06-07&id=8&city=Rajnandgaon


जग में फैले कितने झूठ
शहद में लिपटे कड़वे झूठ
सच्चे झूठ,झूठे झूठ
सच को झुठलाते मीठे झूठ


झूठ सफेद और काले झूठ
करते गडबड झाले झूठ 
छोटा झूठ,बड़ा झूठ 
खुद को सच कहकर अड़ा झूठ....


झूठ भरा है रिश्तों में
ये निभते जैसे किश्तों में....
झूठ पला है अपनों में
झूठ ही दिखता सपनों में...


झूठ बोलते नन्हें बच्चे
तो बड़े बड़े भी कहाँ के सच्चे??
सावन की अब बारिश झूठी
मन में पलती ख्वाहिश झूठी


झूठों का अम्बार लगा है
झूठ ने सच को खूब ठगा है
जग में पलता,मुटियाता झूठ
सच की मैयत में गाता झूठ........


-अनु 





Saturday, June 2, 2012

लाफ्टर थेरेपी

कितना हँसती थी वो....
बात बात पर...हर बात पर....हंस पड़ती खिलखिलाकर....चूडियों की खनक सी ....जलतरंग सी....
फोन पर हैलो कहती- तो हँसती....
किसी से बात करती तो हँसती ज्यादा,बोलती कम....
मानों सब कुछ अच्छा अच्छा ही हो उसके आस-पास......
इतना हँसती कि उसकी आँखें मुंद जातीं....कोर गीले हो जाते....
हैरान था वो !!!
उसकी हँसी पर......सो पूछ बैठा एक रोज कि क्यूँ हँसती हो इतना???? ये तेरी हँसी सच्ची है या यूँ ही हँसती है झूट-मूट में????
फिर हंस पडी वो.....कहने लगी
ये "लाफ्टर थेरेपी" है...                                  जानते नहीं???
कई बीमारियों का इलाज है ये....
आंसुओं को थामे रहती है ये हँसी....
जीवन की धुंध में प्रकाश पुंज है ये हंसी....
अब तुम इसे चाहे सच्ची कहो चाहे झूठी................


होंठों  पे हँसी
आँखों में नमी
खुद को यूँ
कोई छलता है कभी ??


जो चला गया
उसका गम क्यूँ
टपका हुआ आँसू
कहीं मिलता है कभी ??


जो दिल में है
उसे कह भी दे
लरजते होंठ यूँ
कोई सिलता है कभी ??


जो तेरा न था
तेरा ना हुआ
टूटे खिलौनों पे
कोई मचलता है कभी ??


वो सच ना था
एक भरम था तेरा
ख़्वाबों की यादों में
कोई घुलता है कभी ??


जो बीत गया
उसे भूल जा
सूखा हुआ फूल
कहीं खिलता है कभी ???


-अनु 

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...