इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Wednesday, March 21, 2012

क्या है मेरे पास
सिवा मेरे सपनों के...
बिछा दिये हैं मैंने, 
सभी तुम्हारे क़दमों में
ज़रा आहिस्ता चलना
कहीं कुचल  ना जाएँ..

ये प्यार का पागलपन ही तो है जो इतनी हिम्मत देता है कि आप अपने अनमोल सपने किसी के क़दमों में डाल देते हैं, फिर इन्तेज़ार करते हैं कि वो उन्हें उठा कर आपकी पलकों पर सजा दे या यूँ ही गुजर जाये उन पर से, मानों कुछ हुआ ही न हो........
फिर चाहे आप बटोरते रहें किरचें सारी उम्र.........बेमकसद............क्यूंकि उन किरचों को जोड़ कर सपने दोबारा बनाने का हौसला कहाँ बचता है!!! बस  कर बैठते हैं अपनी उंगलियां लहुलुहान......और फिर उस खून से लिखी जाती हैं डायरियां..........रंगे जाते हैं पन्ने........शायद यूँ ही होता है नज्मो/ग़ज़लों/कविताओं का सृजन.............
रोशनाई से लिखी इबारतों में कहाँ वो कशिश होती है...........

                                     हम क्या बनाएँ  बीती बातों का फ़साना
                                                    आखिर  कब लौटा है कोई गुज़रा ज़माना...
 

                                      -अनु

                                          


34 comments:

  1. रोशनाई से लिखी इबारतों में कहाँ वो कशिश होती है.....मन की गहराई तक उतरी यह बात ....

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  2. सपने उतने ही देखें
    जो अपनी छोटी आँखों में समां जाएँ,
    किरचें बनकर न बिखर जाएँ !

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  3. apne sapno ko aise hi kisi anjaan k liye kurbaan kar dena bhi bevkoofi hai....

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  4. हाथ की भी छाप है, दो लोग बैठे हैं ।
    ध्यान दे देखो जरा, किस कद्र ऐंठे हैं ।

    खून क्यूँ बहता, कर कद्र सपनों की,
    आती हुई दीखे, पदचाप अपनों की ।।

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  5. "वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान".. बढ़िया चिंतन

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  6. भावुक कर दिया..

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  7. जो सपने देखने का हौसला रखते हैं , वे हर बार सपना देखते हैं .... लहुलुहान सपनों से ही आदर्श इमारत बनती है

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  8. waah anu ji ghayal hi jane aghyal ki gati ............jamane gujarne ke baad bhi
    ashq na bahe .sapno ko hawa dete rahen .......gujara jamana vapis nahi aata , ///////.............:))))) man ko phir se ghayal kar diya

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  9. विना दर्द के जीना भी कोई जीना है..

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  10. "क्या है मेरे पास .....................सिवा मेरे सपनों के.
    बिछा दिये हैं मैंने, सभी तुम्हारे क़दमों में.....
    ज़रा आहिस्ता चलना..कहीं कुचल ना जाएँ.."
    क्या नाज़ुक अहसास हैं ! बहुत सुन्दर !

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  11. This comment has been removed by a blog administrator.

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    1. thanks reena.....i got ur compliment dear..by mistake the content has been removed..
      :-)
      anu

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  12. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... आभार ।

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  13. आप अपने अनमोल सपने किसी के क़दमों में डाल देते हैं, फिर इन्तेज़ार करते हैं कि वो उन्हें उठा कर आपकी पलकों पर सजा दे या यूँ ही गुजर जाये उन पर से, मानों कुछ हुआ ही न हो........

    यही तो बात है..फिर बिखरे किरचें समेटने का क्या फायदा...

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  14. किरचों से लहूलुहान उँगलियाँ की पीड़ा का अहसास डायरी की दिशा में ले जाता है. शायद यही दिशा पीड़ा को कम करती महसूस होती है. सुंदर रचना.

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  15. आपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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    1. शुक्रिया दिलबाग जी.
      आभार आपका.

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  16. बस एक शब्द ... अद्भुत!!

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  17. जब होता है सपनों का खून
    तब उससे कविता उभरती है..!

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  18. "स्वप्न" ? गीत हैं और कवि ?
    घायल एक परिंदा है
    नस नस में है रक्त विचरता
    गीत तभी तो ज़िंदा है

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  19. ज़रा आहिस्ता चलना..कहीं कुचल ना जाएँ..

    क्या बात है.... वाह!

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  20. भावनाओं का सागर आपकी लिखाई में झलकता है.... हर कविता सामने एक चित्र खड़ा कर देती है.... जीवन का...

    बहुत भावुक रचना.....

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  21. pain is the part of life .sad but nicely said di

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  22. हम क्या बनाएँ बीती बातों का फ़साना
    आखिर कब लौटा है कोई गुज़रा ज़माना...
    पूरी पोस्ट की जान हैं ये पंक्तियाँ |

    सादर
    -आकाश

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  23. सपने की टूटी किरचें कब जुडती हैं ...
    भावुक कर दिया इस रचना ने !

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  24. dard ko roop deti rachana ....lajavab..

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  25. शायद....सपने होते ही हैं....पलकों पर चुभने के लिए ! जो सच हो जाएँ...वो सपने कहाँ...

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  26. सही बात है गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा... लेकिन ये भी सच है ना है सबसे मधुर वो गीत जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं...

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