इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, January 21, 2014

एक शोख़ नज़्म....

एक शोख़ नज़्म
फिसल कर मेरी कलम से
बिखर गयी
धूसर आकाश में !

भीग गया हर लफ्ज़
बादलों के हल्के स्पर्श से...
और वो बन गयी
एक सीली उदास नज़्म!

मेरी हर नज़्म
नतीजा है
मेरी लापरवाहियों का !

सिर्फ तुम्हारे प्रेम पर लिखी नज़्में
होशियारी से लिखे गए
बेमायना अल्फाज़ों का ढेर हैं !!

~अनुलता ~

Thursday, January 16, 2014

सफ़र

मुश्किल था
एक दिन से
दूसरे दिन तक का सफ़र |
एक दिन
जब तुमने कहा विदा !
और दूसरा दिन
जब तुम चले गए....

फिर आसान था 
हर एक दिन से
दूसरे दिन का सफ़र,
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
क़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....

~अनुलता ~

Saturday, December 28, 2013

"विदा 2013" एक नज़्म.........


दिसम्बर के आते ही
सुनाई देने लगती है नए साल की दस्तक
जो तेज़ होती जाती है हर दिन
मानों आगंतुक अधीर हो उठा हो !

मेरा मन भी अधीर हो उठता है
जाते वर्ष की रूंधी आवाज़ और सीली पलकें देख....
बिसरा दिए जाने का दुःख खूब जानती हूँ मैं |

तसल्ली दी मैंने बीते साल को कि
वो रहेगा सदा मेरी स्मृतियों में !
सो जमा कर रही हूँ एक संदूक में
बीते वर्ष की हर बात
जिसने मुझे सहलाया/रुलाया/बहकाया/सिखाया...
...

संदूक में सबसे नीचे रखीं मैंने
अधूरे स्वप्नों की टीस,अनकही बातों की कसक
और कहे - सुने कसैले शब्द !
भटकनों को दबा रही हूँ तली में, अखबार के नीचे......

फिर रखे खट्टे मीठे ,इमली के बूटों जैसे दिन.....
कि उन्हें देख कभी मुस्कुराऊँगी,सीली आँखों से !

इसके ऊपर रखे मैंने मोरपंखी दिन
साथ में तुम्हारी हंसी,होशियारी और मेरा प्रेम |

सबसे ऊपर रखूँगी मेरी डायरी का पन्ना
जिस पर लिखा होगा
विदा
तुमसे ही सुना था ये शब्द......
विदा !!!!
-अनुलता -

Monday, December 2, 2013

तुम्हारे और मेरे बीच......

तुम्हारे और मेरे बीच अगर कुछ होगा
तो वो सिर्फ प्रेम होगा

हमारी हथेलियों पर
हर पल अंकुरित होता प्रेम
स्पर्श की ऊष्मा से....

और हमारे इर्द गिर्द फ़ैली हों
बेचैनियाँ,
हमें एक दूसरे की ओर धकेलती हुई !

किसी और को
करीब आने की नहीं होगी इजाज़त
बस एक दो जुगनू और कुछ तितलियाँ
सच मानो
बड़ी ज़िद्द की है उन्होंने....

हाँ! एक महीन अदृश्य पर्दा होगा
तुम्हारे और मेरे बीच,
कि छिपे रहें मेरे गम
कि तुम्हारी खुशियों को नज़र न लगे उनकी |

तो फिर ये तय हुआ कि
हमारे बीच अगर कुछ होगा
तो वो सिर्फ प्रेम होगा
या होगा एक पागलपन
या फिर दर्द
प्रेम के न होने का !
(तुमने क्या तय किया कहो न ?? )

~अनुलता ~

Tuesday, November 26, 2013

स्वेटर

आँखें खाली
ज़हन उलझा
ठिठुरते रिश्ते  
मन उदास....
सही वक्त है कि उम्मीद की सिलाइयों पर
नर्म गुलाबी ऊन से एक ख्वाब बुना जाय !!

माज़ी के किसी सर्द कोने में कोई न कोई बात,
कोई न कोई याद ज़रूर छिपी होगी
जिसमें ख़्वाबों की बुनाई की विधि होगी,
कितने फंदे ,कब सीधे, कब उलटे......

बुने जाने पर पहनूँगी उस ख्वाब को
कभी तुम भी पहन लेना..
कि ख़्वाबों का माप तो हर मन के लिए
एक सा होता है |
कि उसकी गर्माहट पर हक़ तुम्हारा भी है.....

~अनुलता~

Tuesday, November 19, 2013

सज़ाएं कभी ख़त्म नहीं होतीं.............किये, अनकिये अपराधों की सदायें जब तब कुरेद डालती हैं भरते घावों की पपड़ियों को |
वक्त ज़ख्मों को भरता है...नासूर रिसते हैं ताउम्र.......

जो गलतियाँ हम करते हैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाते हैं और अपने ही नाखूनों  से अपना अंतर्मन खुरचते रहते हैं .शायद अपने लिए यही सजा मुक़र्रर कर लेते हैं |
और अनकिये अपराधों की सज़ा तो दोहरी होती है | बेबसी की यातनाएं सहता लहुलुहान मन बस एक काल्पनिक अदालत में खड़ा चीखता रह जाता है और उनकी दलीलें टकरा-टकरा कर वापस उसी पर प्रहार करती रहती  हैं | 
कभी हम खुद को कोसते हैं कभी कोई यूँ ही आता जाता हमारे ज़ख्मों के सूखे  दरवाजों पर दस्तक देता निकल जाता हैं...बस यूँ ही !!
तारीखें बदलती हैं ....वक्त के साथ सब कुछ घटता जाता है ,सिर्फ अपराध वहीं के वहीं रह जाते हैं ,उतने ही संगीन |
सज़ाएँ पूरी करके भी अपराधी रहता अपराधी ही है |और उसे जीना होता इन  बेचैनियों का बोझ ढोते हुए |
किसी निरपराधी को सज़ा मिले तो मौत ही मिले , कि आत्मा के घुटने  से सांस का घुट जाना बेहतर है....

~अनु ~

[कुछ ख़याल यूँ ही आते हैं ज़हन में......और उन्हें कह देना सुकून देता है....बस थोडा सा आराम बेचैनियों को....]

Thursday, November 14, 2013

दुखों के बीज

आस पास कुछ नया नहीं....
सब वही पुराना,
लोग पुराने
रोग  पुराने
रिश्ते नाते और उनसे जन्में शोक पुराने |
नित नए सृजन करने वाली धरती को
जाने क्या हुआ ?
कुछ नए दुखों के बीज डाले थे कभी
अब तक अन्खुआये नहीं
दुखों के कुछ वृक्ष होते तो
जड़ों से बांधे रहते मुझे/तुम्हें /हमारे प्रेम को....
सुखों की बाढ़ में बहकर
अलग अलग किनारे आ लगे हैं हम |
~अनुलता ~




नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...