दुनिया
में सबसे सुन्दर रिश्ता माँ और उसके बच्चे के बीच होता है......इस रिश्ते
की वजह से जीवन में कई खट्टे मीठे अनुभव होते हैं.....सुनिए मेरी कहानी
"स्नेहा " Neelesh Misra की जादुई आवाज़ में.......जिसे सुनकर आपकी पलकें भीगेंगी मगर होंठ मुस्कुराएंगे......
ये कहानी मैंने "यादों का इडियट बॉक्स विथ नीलेश मिश्रा " के लिए लिखी थी जिसका प्रसारण 12 मई को 92.7 big fm पर हुआ | आप भी सुनिए :-)
click the you tube link and enjoy.............
https://www.youtube.com/watch?v=xp2UuRoHF8I&index=2&list=PLRknjC5MPHa0ORz6ublg_ll9OciXprAjA
जैसे हर गृहणी की दिनचर्या होती है वैसी ही स्नेहा की भी थी | सुबह के सब काम निपटाए, बच्ची और पति को विदा किया, घर समेटा, अखबार पढ़ा ,अपने छोटे से बगीचे को निहारा और पानी दिया | अब तो बिटिया सोनल के घर आने का वक्त भी होने वाला है, और बस स्टॉप तक जाना होता है उसको लेने | क्यूंकि एक तो बस मेन रोड पर आती है और दूसरा लेने न जाने पर उसकी लाडली नाराज़ भी हो जाती है |
ये कहानी मैंने "यादों का इडियट बॉक्स विथ नीलेश मिश्रा " के लिए लिखी थी जिसका प्रसारण 12 मई को 92.7 big fm पर हुआ | आप भी सुनिए :-)
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जैसे हर गृहणी की दिनचर्या होती है वैसी ही स्नेहा की भी थी | सुबह के सब काम निपटाए, बच्ची और पति को विदा किया, घर समेटा, अखबार पढ़ा ,अपने छोटे से बगीचे को निहारा और पानी दिया | अब तो बिटिया सोनल के घर आने का वक्त भी होने वाला है, और बस स्टॉप तक जाना होता है उसको लेने | क्यूंकि एक तो बस मेन रोड पर आती है और दूसरा लेने न जाने पर उसकी लाडली नाराज़ भी हो जाती है |
ज़रा सुस्ताने की नियत से स्नेहा बिस्तर पर निढाल होकर पड़ गयी | आसान कहाँ होती है
एक गृहणी की ज़िन्दगी |
छोटी सी, प्यारी सी दुनिया है स्नेहा की | बेहद
प्यार करने वाला पति समीर है, जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में
अच्छे पद पर है , और एक ये नन्हीं परी ,सोनल |
स्नेहा अपने परिवार की खुशी के लिए सभी जतन करती | घर सम्हालना, बाज़ार के काम, बिटिया की पढ़ाई, मेहमानों की आवभगत और इन सबके बाद मुस्कुराता चेहरा और मधुर व्यवहार | कौन नहीं चाहेगा ऐसी पत्नी |
इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद भी स्नेहा ने घर में ही रहने का फैसला किया | ये पूरी तरह से उसका अपना निर्णय था जो उसने अपने परिवार के हित में लिया था |
स्नेहा अपने परिवार की खुशी के लिए सभी जतन करती | घर सम्हालना, बाज़ार के काम, बिटिया की पढ़ाई, मेहमानों की आवभगत और इन सबके बाद मुस्कुराता चेहरा और मधुर व्यवहार | कौन नहीं चाहेगा ऐसी पत्नी |
इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद भी स्नेहा ने घर में ही रहने का फैसला किया | ये पूरी तरह से उसका अपना निर्णय था जो उसने अपने परिवार के हित में लिया था |
मुझे ये ठीक नहीं लग रहा स्नेहा कि तुम इतना
अच्छा ऑफर ठुकरा रही हो....अभी तो तुम्हारा करियर शुरू भी नहीं हुआ है, समीर ने
हैरान होते हुए कहा था......
देखो समीर मैंने पढ़ाई लिखाई की है अपने
व्यक्तित्व के विकास के लिए, पैसा कमाना अभी मेरी प्रायोरिटी नहीं है, और न ज़रुरत
है | तुम्हारी आय से हमारा ये घर कितने मज़े से तो चल रहा है ,
है न ?
अभी तो सिर्फ मुझे अपने आने वाले बच्चे के लिए सोचना है | बस एक बार बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाय फिर मैं अपना करियर अपने शौक सभी कुछ पूरे करूंगी | स्नेहा ने पति को समझाते हुए कहा...
है न ?
अभी तो सिर्फ मुझे अपने आने वाले बच्चे के लिए सोचना है | बस एक बार बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाय फिर मैं अपना करियर अपने शौक सभी कुछ पूरे करूंगी | स्नेहा ने पति को समझाते हुए कहा...
समीर भी मुस्कुरा दिया,उसे गर्व था अपनी इस
सुलझी सोच वाली समझदार पत्नी पर |
याने बिटिया के बड़े होते ही वो अपना काम शुरू
करेगी ऐसा दोनों पति-पत्नी ने मिल कर तय किया था , किसी भी किस्म का खिचाव ,कोई मतभेद
दोनों के रिश्ते में नहीं था | दोनों ही अच्छे दोस्त की तरह एक दूसरे को समझते थे
और साथ देते थे | एक खूबसूरत रिश्ते के लिए और चाहिए भी क्या होता है |
तभी स्नेहा के चेहरे पर पानी के छींटे पड़े तो वो
ख्यालों के झुरमुट से बाहर निकली, देखा बिटिया मुंह हाथ धोकर उसके
पास आ बैठी है |
क्या हुआ माँ, आज लेने नहीं आयीं ? सर दुःख रहा है क्या ?
सोनल ने अपनी नन्हीं सी कोमल हथेली स्नेहा के माथे पर धर दी.....
सोनल ने अपनी नन्हीं सी कोमल हथेली स्नेहा के माथे पर धर दी.....
कितना सुखद स्पर्श है ये स्नेह का !
स्नेहा ने उसको गले से भींच लिया | न बेटा, जाने किस
सोच में थी और आँख लग गयी |
सॉरी बिटिया रानी, तुझे लेने भी नहीं आयी बस स्टॉप |
सॉरी बिटिया रानी, तुझे लेने भी नहीं आयी बस स्टॉप |
कोई बात नहीं माँ, अब मैं समझदार हो गयी हूँ ,
बस मुझे अच्छा लगता है बस से उतरते ही तुम्हारा चेहरा देखना |
हंस पड़ी स्नेहा |
तभी सोनल उससे लिपटते हुए बोली “माँ , मैं खाना खाने बड़ी माँ के पास जा रही हूँ, उन्होंने मेरे लिए पूरनपोली बनाई है ” इतना कह कर वो गायब हो गयी मानों दौड़ कर नहीं उड़ कर गयी हो उसकी नन्हीं परी |
कितना सुन्दर ,सरल और निष्पाप होता है बचपन सच !! और बच्चे से सुन्दर दुनिया में क्या होता है ? भगवान का दिया हुआ सबसे प्यारा गिफ्ट यही तो होता है |
स्नेहा का मन फिर ख्यालों में उलझने लगा |
हंस पड़ी स्नेहा |
तभी सोनल उससे लिपटते हुए बोली “माँ , मैं खाना खाने बड़ी माँ के पास जा रही हूँ, उन्होंने मेरे लिए पूरनपोली बनाई है ” इतना कह कर वो गायब हो गयी मानों दौड़ कर नहीं उड़ कर गयी हो उसकी नन्हीं परी |
कितना सुन्दर ,सरल और निष्पाप होता है बचपन सच !! और बच्चे से सुन्दर दुनिया में क्या होता है ? भगवान का दिया हुआ सबसे प्यारा गिफ्ट यही तो होता है |
स्नेहा का मन फिर ख्यालों में उलझने लगा |
सोनल की बड़ी माँ, याने स्नेहा की जेठानी “चित्रा”
बहुत स्नेही स्वभाव की सरल और समझदार स्त्री हैं | उनके पति संजय भी बेहद सुलझे स्वभाव ने गम्भीर
पुरुष हैं जो स्नेहा को छोटी बहन का प्यार देते हैं | दुर्भाग्य से चित्रा और संजय
के विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर भी कोई संतान न थी, शायद
इसी वजह से सोनल को वे दोनों दिलोजान से चाहते थे | सोनल भी अपने बड़े पापा और माँ
को भरपूर मान और प्यार देती, उनका खूब ख़याल भी रखती |
स्नेहा की जेठानी उसके घर के नीचे के हिस्से में
ही रहती थी और उसकी सास ज़्यादातर जेठानी के साथ रहती थीं क्यूंकि चित्रा नौकरी
करती थी इसलिए माँ के होने से उनको आराम हो जाता था | समीर और संजय भाई साहब ने
आपसी रज़ामंदी से अलग अलग रहने का निर्णय लिया था | जिससे रिश्तों में खटास न पड़े|
साथ रहने से बर्तन खड़कते ही हैं समीर....और एक बार दरार आयी तो दूरियाँ बनी रहेंगी इसलिए अभी खुशी से अलग रहने लगें, वही अच्छा , संजय भैया ने बड़प्पन दिखाते हुए कहा था |
साथ रहने से बर्तन खड़कते ही हैं समीर....और एक बार दरार आयी तो दूरियाँ बनी रहेंगी इसलिए अभी खुशी से अलग रहने लगें, वही अच्छा , संजय भैया ने बड़प्पन दिखाते हुए कहा था |
आजकल सबको रिश्तों में स्पेस चाहिए रहता है, एक दूसरे
की जिंदगियों में दख़ल न कोई देता है न दिये जाना पसंद करता है | और एक बार दरार आकर फिर अलग होने से प्रेम नहीं
रहता इसलिए दोनों भाइयों का फैसला माँ सहित सभी को मंज़ूर था |
स्नेहा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी | अच्छे
खाते पीते परिवार से होने के कारण उसकी सभी इच्छाएँ बिना कहे पूरी होती थीं | मगर
उसके शिक्षित माँ-बाप ने उसे बहुत अच्छे संस्कार दिए थे | इसलिए वो ससुराल में भी
सबकी चहेती थी |
ब्याह के बाद सास ने पूरे घर की ज़िम्मेदारी
स्नेहा के कन्धों पर ये कहते हुए डाल दी थी, कि “चित्रा
तो दफ्तर जाती है इसलिए घर गृहस्थी का बोझ अब तेरे सर ” | मगर
स्नेहा ने इसे कभी बोझ नहीं समझा और हँसते गुनगुनाते
हुए सभी काम किये | ज़ाहिर है उसकी इन खूबियों की वजह से समीर भी उसका दीवाना था |
वो अक्सर कहता –“ इस सुन्दर चेहरे के साथ प्यारा सा दिल भी मुझे मिलेगा ये नहीं जानता था...स्नेहा आई एम रियली लकी |”
और स्नेहा निहाल हो जाती......
वो अक्सर कहता –“ इस सुन्दर चेहरे के साथ प्यारा सा दिल भी मुझे मिलेगा ये नहीं जानता था...स्नेहा आई एम रियली लकी |”
और स्नेहा निहाल हो जाती......
सुबह से कब शाम हो जाती स्नेहा को पता ही नहीं
लगता और जब सब दफ्तर से लौटते तो वो ताज़ा खिले फूल की तरह नाश्ते-चाय के साथ
स्वागत में खड़ी होती, ये तब की बात है जब वे एक संयुक्त परिवार की तरह रहते थे | उसने कभी अपनी सास को या जेठानी को काम करने
नहीं दिया |
समीर भी कहते कि “माँ ने बड़ी मुश्किल से हमें अकेले पाला है स्नेहा, अब उनके आराम के दिन हैं और भाभी तो नौकरी करती हैं और फिर बच्चे के न होने से वे यूँ भी थोड़ा उदास और निराश रहती हैं , इसलिए उनका ख़याल रखना हम दोनों का फ़र्ज़ है |” और स्नेहा मुस्कुरा कर अपनी सहमति जताती |
समीर भी कहते कि “माँ ने बड़ी मुश्किल से हमें अकेले पाला है स्नेहा, अब उनके आराम के दिन हैं और भाभी तो नौकरी करती हैं और फिर बच्चे के न होने से वे यूँ भी थोड़ा उदास और निराश रहती हैं , इसलिए उनका ख़याल रखना हम दोनों का फ़र्ज़ है |” और स्नेहा मुस्कुरा कर अपनी सहमति जताती |
कुछ छोटी छोटी बातें कभी कभार होती रहती जिनसे
स्नेहा का दिल टूटने लगता, मगर वो ऐसी नेगेटिव बातों को मन
में आने नहीं देती थी | वो जानती थी जब अलग अलग विचारधारा के लोग साथ रहें तो थोड़े
बहुत मतभेद होते हैं | बस दिलों में दूरियां न आयें इसका उसने हमेशा ख़याल रखा |
जैसे उस रोज़ स्नेहा का जन्मदिन था | सबने सुबह
सुबह उसे बधाई दी, माँ मंदिर जाकर प्रसाद ले आयीं फिर शाम को बाहर जाने का वादा
करके सब काम पर चले गए | शाम को समीर के हाथ में तोहफा था| खुशी से उछलते हुए उसने
पैकेट खोला तो उसमें दो साड़ियाँ थीं | एक उसके लिए और एक ज़ाहिर है भाभी के लिए | स्नेहा
का मन थोड़ा बुझा, कि साल में सिर्फ एक दिन तो उसको ख़ास ट्रीटमेंट
दिया जाता |
ये मन भी न ,कभी कभी बच्चों जैसी ज़िद्द करने
लगता है | स्नेहा रूठी तो नहीं थी मगर ज़रा सी उदास हो
गयी |
प्यार आपको कभी कभी स्वार्थी बना देता है, और हर इंसान गुज़रता है ऐसे दौर से | जो समझदार होते हैं वो सम्हल जाते हैं वरना टकराहट होती हैं और मन आहत हो जाते हैं |
प्यार आपको कभी कभी स्वार्थी बना देता है, और हर इंसान गुज़रता है ऐसे दौर से | जो समझदार होते हैं वो सम्हल जाते हैं वरना टकराहट होती हैं और मन आहत हो जाते हैं |
कुछ माह बाद चित्रा भाभी का जन्मदिन था और भैया
ने उन्हें सुन्दर अंगूठी दी | तब स्नेहा ने समीर को हल्का सा ताना दिया कि अरे
मेरे लिए नहीं लाये भैया अंगूठी |
मेरी बीवी समझदार है ये सब जानते हैं न इसलिए समीर ने मुस्कुरा कर कहा.....स्नेहा भी हंस दी |
मेरी बीवी समझदार है ये सब जानते हैं न इसलिए समीर ने मुस्कुरा कर कहा.....स्नेहा भी हंस दी |
स्नेहा को किसी चीज़ का लालच नहीं था बस उसको
लगता कि कभी उसको भी “ख़ास” होने
का एहसास कराया जाय | कभी उसकी भी फ़िक्र की जाय कभी कोई उसकी भी पीठ थपथपाए | सभी के लिए चित्रा भाभी ही महत्वपूर्ण थीं ये
बात वो जानती थी और इस सच को उसने काफी हद तक स्वीकार भी लिया था और अपनी जेठानी
का वो दिल से सम्मान करती थी |
उसकी शादी को दो बरस होने को थे और सोनल
के आने की दस्तक उसने अपने गर्भ में महसूस की | समीर दौरे पर गया था, आते
ही उसने ये खबर उसको सुनाई और वो खुशी से पगला से गया , वाह
स्नेहा ! आज तुमने मुझे जीवन की सबसे बड़ी खुशी दी है....
शुक्रिया शुक्रिया और स्नेहा को गोद में उठा कर नाचने लगा |
फिर अचानक एकदम संजीदा हो गया |
शुक्रिया शुक्रिया और स्नेहा को गोद में उठा कर नाचने लगा |
फिर अचानक एकदम संजीदा हो गया |
“स्नेहा, भैया भाभी को ये खबर हम कैसे
देंगे” ?
तुम फ़िक्र न करो मैं बताउंगी भाभी को, स्नेहा ने
चहकते हुए कहा |
नहीं वो बात नहीं है, दरअसल उनके
विवाह को इतने साल हो चुके हैं और भाभी की गोद अब भी सूनी हैं तो पता नहीं उन्हें
ये सुन कर कैसा लगे....समीर मानों स्नेहा से नहीं खुद से बात कर रहा था |
स्नेहा का मन रो पड़ा ये बात सुन कर कि माँ का
ओहदा उसे भाभी से श्रेष्ठ बना देगा इसलिए क्या उसे माँ बनने से भी रोका जाएगा?
फिर भी मन को समझा कर उसने समीर से कहा – इसमें दुःख होने जैसा क्या है समीर, वो अपना प्यार हमारे बच्चे पर भी लुटा सकते हैं, बच्चा रहेगा तो इसी घर में न, हम सबके साथ पलेगा वो |
फिर भी मन को समझा कर उसने समीर से कहा – इसमें दुःख होने जैसा क्या है समीर, वो अपना प्यार हमारे बच्चे पर भी लुटा सकते हैं, बच्चा रहेगा तो इसी घर में न, हम सबके साथ पलेगा वो |
स्नेहा की बात से समीर खुश हो गया और स्नेहा के
लिए उसके दिल में मान और बढ़ गया | बच्चे के आने की ख़बर से घर में मानों
इन्द्रधनुषी खुशियाँ खिल आयी हों | सबने स्नेहा को हाथों हाथ लिया और फिर नन्हीं
सोनल का आगमन हुआ |
अब स्नेहा की ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ गयी थीं | सारा
दिन बच्ची को सम्हालना और घर के बाकी काम उसे थका डालते थे |
थक कर वो निढ़ाल होकर पलंग पर पड़ जाती तो पास ही
सोती मासूम सी बच्ची का चेहरा उसमें एक नयी ऊर्जा भर देता....वो सोचती, सच माँ
होने से बड़ा कोई सुख नहीं |
तभी सोनल नीचे बड़ी माँ के पास से लौट आयी और साथ लेकर आयी उनकी तारीफों पुलिंदा | माँ , बड़ी माँ बहुत प्यारी हैं न ? फिर वो सहमति के लिए अपनी माँ का चेहरा ताकने लगी |
तभी सोनल नीचे बड़ी माँ के पास से लौट आयी और साथ लेकर आयी उनकी तारीफों पुलिंदा | माँ , बड़ी माँ बहुत प्यारी हैं न ? फिर वो सहमति के लिए अपनी माँ का चेहरा ताकने लगी |
हाँ बेटा ,बहुत प्यारी हैं... बड़ी माँ हैं न
इसलिए तो बड़ी प्यारी हैं वो |
सोनल यही सुनना चाहती थी शायद |
सोनल यही सुनना चाहती थी शायद |
खिल गया उसका चेहरा |
बस माँ एक बात बड़ी माँ की मुझे अच्छी नहीं लगती कि वो मुझे सहेलियों के पास खेलने नहीं देतीं | बस “यहीं रह, मेरे साथ खेल” की रट लगाती हैं...
माँ तुम उन्हें समझाओ न....
बस माँ एक बात बड़ी माँ की मुझे अच्छी नहीं लगती कि वो मुझे सहेलियों के पास खेलने नहीं देतीं | बस “यहीं रह, मेरे साथ खेल” की रट लगाती हैं...
माँ तुम उन्हें समझाओ न....
स्नेहा सोच में पड़ गयी....मगर उसके उत्तर की
प्रतीक्षा किसे थी....सोनल तो सीढियाँ उतरकर बाहर पार्क में जा चुकी थी |
उसे एहसास हुआ सोनल अब बड़ी होने लगी और स्कूल
जाने लगी है इसलिए उसके दोस्त भी बन गए हैं| अब वो घर के बड़ों के साथ नहीं बल्कि
अपने हमउम्र बच्चों के बीच रहना पसंद करती
है | घर के पांच बड़ों के बीच उसकी उकताहट को स्नेहा महसूस कर रही थी इन दिनों |
स्नेहा को लगा अब वक्त आ गया है जब उन्हें दूसरे
बच्चे के लिए सोचना चाहिए | उसने तय किया
कि आज रात को स्नेह के सो जाने पर समीर से बात करेगी |
रात को वो समीर के सीने पर सर रख लेट गयी...समीर उसके बालों में उँगलियाँ फिरता रहा.....उसने धीरे से कहा, समीर आजकल सोनल चिडचिडी हो गयी है.....
हाँ मुझे भी लगता है, मैं सोच रहा था उसकी स्कूल टीचर से पूछूँ |
रात को वो समीर के सीने पर सर रख लेट गयी...समीर उसके बालों में उँगलियाँ फिरता रहा.....उसने धीरे से कहा, समीर आजकल सोनल चिडचिडी हो गयी है.....
हाँ मुझे भी लगता है, मैं सोच रहा था उसकी स्कूल टीचर से पूछूँ |
“ इसमें उसकी टीचर क्या करेंगी ! हमें ही सोचना
है | समीर हमें सोनल के लिए छोटा भाई या बहन ले आना चाहिए |”
स्नेहा की बात सुन कर समीर थोडा चौंक गया |
स्नेहा की बात सुन कर समीर थोडा चौंक गया |
स्नेहा बोली, “दो बच्चे तो होने ही चाहिए न?
कल को हम न होंगे तो सोनल के पास अपना कहने को आखिर कोई तो होगा कि
नहीं” |
बात एकदम पते की थी मगर समीर न जाने किस सोच में
डूबा हुआ था |
अगली सुबह स्नेहा पूजा करके बाहर आयी तो चित्रा
भाभी ,भैया और माँ भी बरामदे में बैठे थे | सबके चेहरों पर कोई ऐसे
भाव थे कि स्नेहा पढ़ न सकी | सब के सब उसे किसी दूसरे ग्रह से आये प्राणियों की
तरह लग रहे थे |
कुछ तो बात है वरना इतनी सुबह सब एक साथ यहाँ ? स्नेहा को थोड़ी हैरानी हुई ...
कुछ तो बात है वरना इतनी सुबह सब एक साथ यहाँ ? स्नेहा को थोड़ी हैरानी हुई ...
तभी माँ ने उसको पास बुलाया, सर पर हाथ
फिराते हुए पूछा कि तू दूसरा बच्चा प्लान कर रही है ? स्नेहा
ने शरमाते हुए हाँ में सर हिलाया |
स्नेहा खुश हुई कि चलो समीर ने खुद ही ये बात सबको बता दी, उसने समीर की ओर देखा मगर वो सर झुकाए नीचे पड़े कालीन को नाखूनों से कुरेद रहा था |
स्नेहा खुश हुई कि चलो समीर ने खुद ही ये बात सबको बता दी, उसने समीर की ओर देखा मगर वो सर झुकाए नीचे पड़े कालीन को नाखूनों से कुरेद रहा था |
माँ ने बिना किसी ज्यादा भूमिका के कहा “स्नेहा हम
सबने तय किया है कि इस आने वाले बच्चे को चित्रा और संजय गोद लेंगे, बच्चा तेरे पास ही रहेगा और चित्रा की गोद भी भर जायेगी ” |
स्नेह का कलेजा धक् से रह गया |
स्नेह का कलेजा धक् से रह गया |
माँ का फरमान सुन हमेशा मुस्कुराकर बात मान लेने
वाली स्नेहा शेरनी की तरह खडी हो गयी, और बिना कुछ सोचे उसने कह डाला – कि मेरे
बच्चे के बारे में निर्णय आप सबने अकेले मिल कर कैसे ले लिया ? और मैं अपना बच्चा हर्गिज किसी को नहीं दूंगी | भाभी चाहें तो अनाथ आश्रम
से बच्चा गोद ले सकती हैं | और आप सबने मुझसे पूछे बिना, सहमति लिए बिना ये निर्णय
लिया कैसे ?
और समीर आप भी ?
सब अवाक स्नेहा को देखते रहे क्यूंकि इतने सालों
में उसका ये रूप सबने पहली बार देखा था | इसके पहले आज तक उसने किसी का अपमान तो
दूर तेज़ आवाज़ में बात नहीं की थी |
सब थोड़ा सहम से गए थे सो उसके इस तीखे लहजे पर किसी
ने कुछ कहा नहीं |
फिर माँ ने हिचकते हुए धीरे से कहा,
“किसी अनजान बच्चे को कैसे गोद ले लें...अपना प्यार क्या ऐसे किसी सड़क छाप पर लुटा दें ? जाने किसका पाप हो, किसका गन्दा खून बह रहा हो उसकी रगों में |
“किसी अनजान बच्चे को कैसे गोद ले लें...अपना प्यार क्या ऐसे किसी सड़क छाप पर लुटा दें ? जाने किसका पाप हो, किसका गन्दा खून बह रहा हो उसकी रगों में |
भाभी ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई |
शिक्षित और समझदार होकर भी कैसी बातें कर रहे
हैं आप लोग ,स्नेहा भड़क गयी.
बच्चा किसी का पाप कैसे हो सकता है माँ.....
हाँ उसको जन्म देने वाली माँ या उसने जन्म का कारण बनने वाला पिता पापी हो सकता है और किसी का पाप अगली पीढ़ी तक नहीं जाता माँ | बच्चा तो ईश्वर का रूप माना जाता है न ? फिर पाप की जगह कहाँ है उसमें ? और खून तो जिसकी रगों में भी बह रहा हो ,लाल ही होता है न भाभी ?
स्नेह ने सवाल पर सवाल दाग दिए मगर किसी ने कोई उत्तर न दिया |
बच्चा किसी का पाप कैसे हो सकता है माँ.....
हाँ उसको जन्म देने वाली माँ या उसने जन्म का कारण बनने वाला पिता पापी हो सकता है और किसी का पाप अगली पीढ़ी तक नहीं जाता माँ | बच्चा तो ईश्वर का रूप माना जाता है न ? फिर पाप की जगह कहाँ है उसमें ? और खून तो जिसकी रगों में भी बह रहा हो ,लाल ही होता है न भाभी ?
स्नेह ने सवाल पर सवाल दाग दिए मगर किसी ने कोई उत्तर न दिया |
स्नेहा ने थोड़ा शांति से फिर समझाने की कोशिश की
-
भाभी बच्चा बड़ा होकर जब जानेगा कि उसकी असली माँ मैं हूँ तब ??
और क्या मैं अपने भीतर की माँ को उसके बड़ा होने तक मारती रहूंगी | आप लोगों को नहीं लगता कि दो माओं की खींचतान में एक नन्हा सा दिल छलनी होता रहेगा |
ढेरों समस्याएं जन्म लेंगी , आप लोग समझने की कोशिश तो करें....
इस फैसले से हमारे सम्बन्ध भी कडवाहट से भर जायेंगे भैया ,स्नेह ने जेठ की ओर आशा से देखा |
भाभी बच्चा बड़ा होकर जब जानेगा कि उसकी असली माँ मैं हूँ तब ??
और क्या मैं अपने भीतर की माँ को उसके बड़ा होने तक मारती रहूंगी | आप लोगों को नहीं लगता कि दो माओं की खींचतान में एक नन्हा सा दिल छलनी होता रहेगा |
ढेरों समस्याएं जन्म लेंगी , आप लोग समझने की कोशिश तो करें....
इस फैसले से हमारे सम्बन्ध भी कडवाहट से भर जायेंगे भैया ,स्नेह ने जेठ की ओर आशा से देखा |
मगर उन्होंने भी स्नेहा को अनसुना कर दिया ,
मानों सब उसका बच्चा छुड़ा लेने की साज़िश किये बैठे हों |
और अनाथ आश्रम से बच्चा गोद
लेने पर वो पूरी तरह से आपका होगा और किसी मासूम की ज़िन्दगी संवारने का पुण्य भी
पायेंगे आप | और वो सड़क छाप नहीं माँ, आपका पोता कहलायेगा |
स्नेहा ने समझाने की एक आख़री कोशिश की |
मगर किसी ने स्नेहा की बात का कोई उत्तर नहीं
दिया...और स्नेहा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी |
उस रोज़ पहली बार समीर उससे ज़रा नाराज़ दिखा और भीतर ही भीतर वो भी नाराज़ थी सभी से और समाज में फ़ैली इन ओछी मान्यताओं से भी |
उस रोज़ पहली बार समीर उससे ज़रा नाराज़ दिखा और भीतर ही भीतर वो भी नाराज़ थी सभी से और समाज में फ़ैली इन ओछी मान्यताओं से भी |
रात भर स्नेहा को नींद नहीं आयी, उसका मन इसी उधेड़बुन
में लगा रहा कि इस समस्या का हल कैसे करे.......
“ हे प्रभु कोई राह दिखाओ, कि परिवार भी न टूटे और मेरी गोद भी न उजड़े ,वो मन ही मन प्रार्थना करती रही |
“ हे प्रभु कोई राह दिखाओ, कि परिवार भी न टूटे और मेरी गोद भी न उजड़े ,वो मन ही मन प्रार्थना करती रही |
समीर भी करवटें बदलता रहा मगर उसने कोई बात नहीं
की | ज़ाहिर है वो भी स्नेहा के इंकार से व्यथित था |
सुबह का सूरज एक नया चमचमाता दिन लेकर आया था | शायद ईश्वर ने हर दुविधा का हल बना रखा है |
स्नेहा ने रात भर जाग कर पूरी प्लानिंग कर डाली थी , और अपने फैसले से बहुत खुश थी
|
रोज़ के काम से फुर्सत पाकर स्नेहा अपनी सहेली के
साथ एक अनाथाश्रम गयी | यहाँ वो पहले भी कई बार आयी है अपनी किटी पार्टी के
सदस्यों के साथ , सामाजिक सेवा के उद्देश्य से |
वहाँ कितने ही ऐसे बच्चे थे जिन्हें देख किसी का
भी मन भीग जाये | एक छोटी सी छः माह की स्वस्थ बच्ची को स्नेहा ने गोद में उठा
लिया और भींच लिया सीने से |
कुछ फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद वो बच्ची को
घर ले आयी | उसने बच्ची का झूला सजाया, उसको साफ़ सुन्दर कपड़े
पहनाये और समीर के घर आने का इंतज़ार करने लगी |
समीर ने बच्ची को देखा तो चौंक गया...”ये नन्हीं
परी कौन हैं भई ” ?
और जवाब दिया सोनल ने, - पापा ये
मेरी छोटी बहन है, अब मैं इसके साथ खेलूंगी |
कित्ती प्यारी है न पापा ?
इसका नाम मैंने “साक्षी” रखा है पापा...अच्छा नाम है न ?
...मेरी बेस्ट फ्रेंड का नाम है |
सोनल की खुशी और उसका उत्साह देखते ही बनता था....
कित्ती प्यारी है न पापा ?
इसका नाम मैंने “साक्षी” रखा है पापा...अच्छा नाम है न ?
...मेरी बेस्ट फ्रेंड का नाम है |
सोनल की खुशी और उसका उत्साह देखते ही बनता था....
समीर ने स्नेहा की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा,
स्नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैंने ये बच्चा
गोद लिया है, अब न मैं बच्चा पैदा करूंगी न मुझे उससे बिछड़ने का दर्द सहना
होगा |
और ये फ़ैसला मैं बदलूंगी नहीं समीर, तुम ज़िद्द न करना |
समीर कुछ कह नहीं सका, कुछ कह सकने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी स्नेहा ने |
और ये फ़ैसला मैं बदलूंगी नहीं समीर, तुम ज़िद्द न करना |
समीर कुछ कह नहीं सका, कुछ कह सकने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी स्नेहा ने |
भाभी भैया और माँ को न उसका ये फैसला पसंद आया न
बच्ची |
बच्ची बहुत प्यारी थी और सोनल के साथ अब समीर भी उसको खिलाने लगा था |
माँ और भैया भाभी उसे देखते मगर कभी खुल कर प्यार जताने की कोशिश न करते |
बच्ची बहुत प्यारी थी और सोनल के साथ अब समीर भी उसको खिलाने लगा था |
माँ और भैया भाभी उसे देखते मगर कभी खुल कर प्यार जताने की कोशिश न करते |
एक माह हो गया था साक्षी को आये हुए,और अब वो
परिवार का हिस्सा थी |
एक दिन स्नेहा नहा रही थी तो बच्ची के लगातार रोने
की आवाज़ सुन भाभी ऊपर आ गयी |
साक्षी को उन्होंने गोद में उठा लिया, प्यार भरी गोद पाते ही बच्ची चुप हो गयी और भाभी से चिपक गयी |
स्नेहा छिप कर भाभी की प्रतिक्रिया देखती रही |
उन्होंने बच्ची को कस के अपने सीने से भींच लिया था , स्नेहा महसूस कर रही थी उनके मन में उमड़ते प्रेम को और देख रही थी उनकी भीगी पलकें |
पीछे खडी माँ भी भाभी का मन पढ़ने का प्रयास कर रही थीं |
साक्षी को उन्होंने गोद में उठा लिया, प्यार भरी गोद पाते ही बच्ची चुप हो गयी और भाभी से चिपक गयी |
स्नेहा छिप कर भाभी की प्रतिक्रिया देखती रही |
उन्होंने बच्ची को कस के अपने सीने से भींच लिया था , स्नेहा महसूस कर रही थी उनके मन में उमड़ते प्रेम को और देख रही थी उनकी भीगी पलकें |
पीछे खडी माँ भी भाभी का मन पढ़ने का प्रयास कर रही थीं |
स्नेहा ने आकर उनसे बच्ची लेने की कोशिश की तो
चित्रा ने उसे और कस के भींच लिया और स्नेहा का हाथ पकड़कर बोलीं, स्नेहा
मुझे भी ले चलो अनाथाश्रम |
मुझे भी एक “साक्षी” की माँ बना दो प्लीस......
स्नेहा जानती थी कि स्नेह कड़ी से कड़ी चट्टानों को भी पिघला देता है | लावा बनकर बहता प्रेम फिर रोके से नहीं रुकता | फिर बच्चे के लिए माँ का प्रेम तो अनोखा ही होता है |
मुझे भी एक “साक्षी” की माँ बना दो प्लीस......
स्नेहा जानती थी कि स्नेह कड़ी से कड़ी चट्टानों को भी पिघला देता है | लावा बनकर बहता प्रेम फिर रोके से नहीं रुकता | फिर बच्चे के लिए माँ का प्रेम तो अनोखा ही होता है |
स्नेहा ने साक्षी को भाभी की गोद से ले लिया और
फिर वापस उन्हें थमाते हुए बोली- भाभी ये लीजिये आपकी साक्षी, बन जाइए
इसकी माँ |
समीर ,भैया, माँ
और भाभी सभी हैरानी से उसका चेहरा देखने लगे |
स्नेहा ने भरे गले से कहा, भाभी साक्षी
को मैं आपके लिए ही लाई थी | जब तर्कों से आप सबको
नहीं समझा पायी तब मैंने ये मीठी सी साजिश रच डाली |
देखिये जो काम मैं न कर सकी इस नन्हीं सी बच्ची
ने कर दिखाया |
आपको बहुत बहुत बधाई हो भाभी, आप माँ बन गयीं !!!
सब मुस्कुरा उठे और एक बार फिर स्नेह की जीत हुई |
आपको बहुत बहुत बधाई हो भाभी, आप माँ बन गयीं !!!
सब मुस्कुरा उठे और एक बार फिर स्नेह की जीत हुई |
अनुलता राज नायर ( for याद शहर )