एक शोख़ नज़्म
फिसल कर मेरी कलम से
बिखर गयी
धूसर आकाश में !
भीग गया हर लफ्ज़
बादलों के हल्के स्पर्श से...
और वो बन गयी
एक सीली उदास नज़्म!
मेरी हर नज़्म
नतीजा है
मेरी लापरवाहियों का !
सिर्फ तुम्हारे प्रेम पर लिखी नज़्में
होशियारी से लिखे गए
बेमायना अल्फाज़ों का ढेर हैं !!
~अनुलता ~
फिसल कर मेरी कलम से
बिखर गयी
धूसर आकाश में !
भीग गया हर लफ्ज़
बादलों के हल्के स्पर्श से...
और वो बन गयी
एक सीली उदास नज़्म!
मेरी हर नज़्म
नतीजा है
मेरी लापरवाहियों का !
सिर्फ तुम्हारे प्रेम पर लिखी नज़्में
होशियारी से लिखे गए
बेमायना अल्फाज़ों का ढेर हैं !!
~अनुलता ~