तेरी सूरत चस्पा है
मेरी आँखों की पुतलियों में
मेरी तस्वीर तेरी
पुरानी किसी दराज में नहीं.....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरा ज़िक्र मैं करती रही
हर बात में हर सांस में
पढ़ कर मेरी नज़्म कोई
तू कभी चौंका ही नहीं .....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरे इश्क में मैं
मुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
मैं सुलगती रही
गीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
अनु
मेरी आँखों की पुतलियों में
मेरी तस्वीर तेरी
पुरानी किसी दराज में नहीं.....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरा ज़िक्र मैं करती रही
हर बात में हर सांस में
पढ़ कर मेरी नज़्म कोई
तू कभी चौंका ही नहीं .....
जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
तेरे इश्क में मैं
मुमताज़ हुई
बस एक ताजमहल सा तूने
कुछ कभी गढ़ा ही नहीं...
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
मैं सुलगती रही
गीली लकड़ी की तरह
(उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...)
तेरी आँखों में मगर
आँसू सा कुछ उतरा ही नहीं.....
जानती हूँ, मैं तेरी कुछ नहीं लगती !
अनु