भास्कर भूमि में प्रकशित २३/७/१२ http://bhaskarbhumi.com/epaper/index.php?d=2012-07-23&id=8&city=Rajnandgaon
मौत कितनी आसान होती
अगर हम जिस्म के साथ
दफ़न कर पाते
यादों को भी....
......................................................
मौत कुदरत का तोहफा है
ये मिटा देती है
सभी दर्द...
उसके, जो मरा है...
......................................................
मौत अकसर भ्रमित होती है.
आती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
.................................................
मौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
...................................................
मौत से मुझे
डर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से...
...................................................
मौत का दुःख
अकसर एक सा नहीं होता...
कौन मरा ?
कैसे मरा?
कब मरा?
पहले सब हिसाब किया जाता है....
.............................................................................
-अनु
मौत कितनी आसान होती
अगर हम जिस्म के साथ
दफ़न कर पाते
यादों को भी....
......................................................
मौत कुदरत का तोहफा है
ये मिटा देती है
सभी दर्द...
उसके, जो मरा है...
......................................................
मौत अकसर भ्रमित होती है.
आती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
.................................................
मौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
...................................................
मौत से मुझे
डर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से...
...................................................
मौत का दुःख
अकसर एक सा नहीं होता...
कौन मरा ?
कैसे मरा?
कब मरा?
पहले सब हिसाब किया जाता है....
.............................................................................
-अनु
गहन विचार ...
ReplyDeleteशुभकामनायें.
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना ! सादर !
ReplyDeleteभावपूर्ण, किंचित दार्शनिक!मगर ...
ReplyDeleteमुगालता नहीं मुझे अपनी मौत का
हम जिन्दा कहाँ हैं जो मर जायेगें? :-)
मौत ही हमें जीने की प्रेरणा देती है !
ReplyDeleteमौत कुदरत का तोहफा है...
ReplyDeleteगहरी सच्चाई है इन शब्दों में.... शुभकामनायें
और उन्हें पहचानती नहीं
ReplyDeleteजो जी रहे हैं मुर्दों की तरह
कमाल है , बधाई एक संकलन लायक रचना के लिए अनु !
खूबसूरत रचना..गहन भाव...
ReplyDeleteगहन भाव..बहुत खूबसूरत रचना..
ReplyDeleteमौत जब किसी
ReplyDeleteपाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ... आभार
मौत आती है तभी नयी जिंदगी आती है..
ReplyDeleteसभी बेहतरीन ,गहरे भाव लिए रचना
:-)
मौत को बहुत दार्शनिक नज़रिये से देखा है .... मौत का दुख भी एक सा नहीं होता .... हिसाब लगाया जाता है .... वैसे भी लोग किसी के मरने पर कहाँ रोते हैं ....रोते हैं उसके न होने की स्थिति में आने वाले दुखों को सोच कर ...
ReplyDeleteऔर एक बात दुख का अधिकार भी उनको ही होता है जिनको सारी सुविधाएं हैं दुख दिखाने की इस संदर्भ में मुझे हमेशा एक कहानी याद आती है जिसके लेखक राम चंद्र शुक्ल हैं ...दुख का अधिकार ....कभी अवसर मिले तो पढ़िएगा । वैसे शायद यह कहानी केन्द्रीय विद्यालय की छठी या सातवीं कक्षा में हिन्दी पाठ्य क्रम में पढ़ी भी होगी ।
संगीता दी को अपना केन्द्रीय विद्यालय याद आया .;)
Deleteवाह !
ReplyDeleteआखिरी दो क्षणिकाओं में बेबाक सच्चाई बयाँ की है .
मौत से मुझे
ReplyDeleteडर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से...
....................
फकीर का चोला पहने शब्दों की बेहतरीन यात्रा ...
कहीं कोई ग़ालिब... गुलज़ार और मीर...
मौत से मुझे
ReplyDeleteडर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से...
बहुत खूब ...
मौत काफी खुबसूरत हो गयी है इन क्षणिकाओं में
सही में मौत से क्या डरना .
Gostei muito..
ReplyDeleteObrigada sempre pela amavel visita...
Com carinho...
and here is the english translation :-)
Delete"I really enjoyed ..
Thank you always for the lovely visit ...
With love ...
मौत को कई कोण से देख डाला आपने . किसी शायर ने ये भी तो कहा था की मौत महबूबा है और जिंदगी बेवफा है . भाई हम तो कहेंगे "मृत्युंमां अमृतं गमय ". .
ReplyDeleteकल 22/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया यशवंत |
Deleteकवि की कल्पना ही तो है कि जिन्दगी ही नहीं जिन्दगी के बाद की भी सोचता है। आपकी इस कल्पना को सलाम !
ReplyDeleteमौत ... कई भाव , हर भाव में अर्थ ...
ReplyDeleteमौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
Uff Great !
ReplyDeletenice!
heart touching words you had expressed "Expression".
Really i like it ..
Pls Visit My new post "Abla Kaoun"
Shravan!
सुंदर बहुत सुंदर
ReplyDeleteमौत अकसर भ्रमित होती है.
ReplyDeleteआती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
बहुत सच्ची बात कही है ......
मौत के दुःख अलग अलग होते हैं ..सच है..बहुत गहराई से सोच डाला है मौत को :).
ReplyDeleteमैडम जी अपना आई डी तो भेज दो कि कम से आपके शहर में आपसे संपर्क कर पायें :).
sending on ur e-mail add (:>
Deleteमौत तेरे रुप अनेक..बहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteमौत जब किसी
ReplyDeleteपाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी
I dont know what to say now... this is simply beautiful..
cogratz :)
~" 'मौत'....दो अक्षरों में समाई वो शय है...जो हमें पूरी ज़िंदगी का मतलब समझा जाती है...!"~
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनु जी ! ख़ासकर 3rd stanza ! बहुत सही बात कही है !
मौत की आगोश में आकर भी जीवन से मुक्त नहीं हो पाता है मनुष्य...
ReplyDeleteउसके कर्मों का लेखा जोखा दुनिया वाले जो रख रहे होते है...
सुंदर रचना...
सस्नेह
मौत से काहे का डरना
ReplyDeleteमौत से पहले काहे का मरना ....
बहुत खूब लिखा है मंजू जी ...
शुभकामनाये आपकी लेखनी को !
DEEEP THOUGHTS WELL EXPRESSED.
ReplyDeleteजीवन का कटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....
ReplyDeleteमौत कुदरत का तोहफा है
ReplyDeleteये मिटा देती हैं
सभी दर्द...
उसके, जो मरा है...
ये मिटा देती "है "/मिटा देती "हैं "है कर लें.
बहुत बढ़िया विचार व्यंजना है .बधाई .
done!!thanks for reading so precisely.
Deleteमौत तो एक दिन सबकी होनी ही है
ReplyDeleteयह जानते हुए,मौत से क्यों डरना,,,,,
बहुत सुंदर रचना,,,,,,
कोई मरता है , कोई नहीं रहता है , कोई अमर होता है |
ReplyDeleteकोई रुला जाता है , कोई रोता छोड़ जाता है और कोई बस सिसकियाँ दे जाता है |
सच कहा आपने , अलग अलग मौत और अलग अलग मातम |
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मौत कुदरत का तोहफा है
ReplyDeleteये मिटा देती है
सभी दर्द...
उसके, जो मरा है...
क्या बात कही है अनु जी. लेकिन यह तोहफा कबूल करने को लोग तैयार नहीं रहते बस.
मुखर व प्रखर अभिव्यक्ति ......काव्य की मर्म के साथ भवनिष्ठाता प्रशंसनीय है ....
ReplyDeleteमुखर व प्रखर अभिव्यक्ति ......काव्य की मर्म के साथ भवनिष्ठता प्रशंसनीय है ....
ReplyDeleteजिसकी किसी की याद नहीं आती
ReplyDeleteउसे क्यों याद आप दिलाती हो
हम जैसे डरपोक भी हैं यहाँ
खाली में हमें क्यों डराती हो।
वैसे अच्छी लिखी है बहुत "मौत"
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..... मौत उन्हें पहचानती नहीं जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह ....कहते हैं अच्छे इंसानों की उपर वाले को भी जरूरत होती है
ReplyDeleteमौत ,मौत में फर्क करते हैं बहुत तीखा और अच्छा कटाक्ष किया है -----बहुत उम्दा प्रस्तुति
ये एक ऐसी हकीकत है जिसका किसी को भी इनकार नही है.आस्तिक और नास्तिक भी इस पर यकीन रखते हैं.
ReplyDelete''मौत से किसकी यारी है ,आज इसकी तो कल उसकी बारी है...,,
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
विषय तो है मौत... पर यह मौत अच्छी लगी ... उम्दा लिखा वाह
ReplyDeleteमौत पर काफी चिंतन किया गया है ..
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति भी !!
बहुत सुंदर ! मौत की सच्चाई से दो चार करवा दिया और वो सच जो शाश्वत है, जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता है.
ReplyDeleteसुन्दर चिंतन.
ReplyDeleteसभी कशानिकाएं लाजवाब ...
ReplyDeleteपर यादों को दफ़न करना आसान नहीं है .... जीते जी तो बिलकुल नहीं ...
मौत.....तेरी कहानी है निराली...
ReplyDeleteमौत जब किसी
ReplyDeleteपाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
bauhat sunder....
antim para mein bauhat hi teekhi sacchai likhi hai!!
अनु जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'my dreams & exprssions' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 जुलाई 'मौत' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
शुक्रिया नीति जी.
ReplyDeleteआपकी और अतुल जी की आभारी हूँ.
Kya kamaal ka likha hai aapne!
ReplyDeleteमौत से तो वही डरते हैं जो जीना नहीं जानते।
ReplyDeleteमौत अकसर भ्रमित होती है.
ReplyDeleteआती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
...लाज़वाब! सभी क्षणिकाएं अंतस को छू जाती हैं...बधाई
Time passes, and everyone's end does come sooner or later. We need to face it when it comes :)
ReplyDeleteअर्थपूर्ण क्षणिकाएं
ReplyDeleteमौत पर सभी क्षणिकाएँ बहुत भावपूर्ण है. ये बहुत ख़ास लगी...
ReplyDeleteमौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
एक अलग सी आशा, मौत से भी... अति सुन्दर, बधाई.
Bahut sudnar rachna... jiwan ki bahut achi bethika...Sadhuwad.
ReplyDeleteमौत अकसर भ्रमित होती है.
ReplyDeleteआती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
bahut khubsurat panktiya hai anu ji....ek gehra baav or dard samete hue
मौत जब किसी
ReplyDeleteपाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी....
बहुत सुन्दर
मौत अकसर भ्रमित होती है.
ReplyDeleteआती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
एक से बढ़कर एक....
"मौत अकसर भ्रमित होती है.
ReplyDeleteआती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह."
अच्छी क्षणिकाएँ हैं।
par mujhe maut se kyon lagta hai dar:)
ReplyDeletehara kshanikayen lajabab!!
ReplyDeleteनिर्विकार भाव से यूँ मौत को देख पाना ..अद्भुत नजरिया है
ReplyDeleteनिर्विकार भाव से यूँ मौत को देख पाना ..अद्भुत नजरिया है ..
ReplyDeletebahut sahi sundar har pankti ...
ReplyDelete