अंधेरों को..
देख सके हो कभी
स्याह कागज़ पर उकेरे
कोई शब्द???
सुना है क्या तुमने कभी
सन्नाटे को?
जब कोई नहीं दूर दूर तक...
तब पहुंची है क्या
कोई आवाज़
कोई आवाज़
तुम तक ??
महसूस किया है किसी को
किसी बियाबान में...
आबादी से कोसों दूर...
खुद को पाया है
किसी के करीब???
अगर हाँ ,तो फिर
तुम अवश्य जान गए होगे
कि तुम कौन हो...
क्या वजूद है तुम्हारा..
क्या सच है तुम्हारा...
बनावटीपन और चकाचौंध से परे
बेनकाब अपने चेहरे को
पहचानते हो क्या???
कहो !!
क्या खुश हो तुम
"स्वयं" से मिल कर ???
-अनु
-अनु
बहुत ही बेहतरीन रचना अनु जी, खुद से पहचान करवाती..
ReplyDeleteबनावटी दुनिया को जैसे जानते नही,
ReplyDeleteमतलब निकल गया, पहचानते नही,,
RECENT POST...: दोहे,,,,
कहो !!
ReplyDeleteक्या खुश हो तुम
"स्वयं" से मिल कर ???
इस बात ने तो सोचने पर मजबूर कर दिया...
खुद से मिलकर आलोचक बनने की हिम्मत हम कर पाते हैं क्या...शायद नहीं...
स्वयं से मिलना निश्चित सुखमय होगा!
ReplyDeleteसबसे ज़रूरी पहचान तो अपनी ही है और वह होती है निपट अकेले और अँधेरे में !
ReplyDeleteअनु जी, भावविभोर करने वाली रचना...
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
प्रशसनीय.... मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबनावटीपन और चकाचौंध से परे बेनकाब स्वयं से मिलकर सचमुच बहुत सुख मिलता है. बेहतरीन प्रस्तुति ...
ReplyDeleteख़ुद से मिलना ही सबसे दुष्कर होता है। और अगर मानम उससे मिल ले तो फिर बहुत सी समस्याएं सुलझ जाएं।
ReplyDeleteजो खुद से मिलने को बचता रहता है वह सहजता से कभी दूसरो से भी नहीं मिल पाता
ReplyDeleteसंस्कृत में कहा ही गया है -आत्मवत सर्वभूतेषु समाचरेत!
अच्छे विचार बोध की कविता
Very thoughtful composition,today most people do not have time to do what you are-they are more like robots
ReplyDeleteआत्मावलोकन मानुष के लिए हमेशा से हितकारी रहा है , और शायद अजन्मा की तरफ बढ़ने के रास्ते में पहला कदम भी ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बढ़िया सवाल --तलाश अभी जारी है !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुती |
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
तुमने अंधेरों को नहीं पढ़ा अगर
ReplyDeleteनहीं सुना समझा नदी का प्रलाप .... तो तुम ! क्या व्याख्या करूँ
i used google translate to enjoy your poem... :)
ReplyDeleteखुद को समझना ही सब से महत्वपूर्ण है.
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण कविता.
खुद को जानना खुद को पहचानना बहुत मुश्किल होता है अगर एक बार खुद को जान लिया तो सारी मुश्किल का ही हल होजाए...लेकिन खुद को जानना भी जरुरी है.. गहन प्रस्तुति..
ReplyDeleteगहन भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा
अच्छी लगी यह कविता।
ReplyDeleteएक तो खुद से मिलना ही मुश्किल दूजे मिलने के बाद खुश हो पाना कितना कठिन है यह सब!
खुद से मिलना यक़ीनन सुखमय होगा.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहरे भाव लिए रचना...
:-)
खुद से मिल लिए तो क्या बाकी रहा फिर सब सहज है.
ReplyDeleteखुद के भीतर झांक सके तो मनुष्य सम्पूर्ण हो जाये....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteअति उत्तम अनु जी, खुद से मिलने की तलाश में ही पूरी जिंदगी गुजर जाती है हमारी, मेरी तलाश तो अभी जारी है..
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक एवं सारगर्भित प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर आपका स्वागत है। धन्यवाद ।
ReplyDeleteVery nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
स्वयं से मुलाकात बहुत कठिन हैं ...बहुत खूब ....सादर
ReplyDeleteस्वयं से मिलना कहाँ हो पाता है ,यही तो मुश्किल है | दार्शनिक रचना |
ReplyDeleteYour poems make me wonder..They have such deep meanings..
ReplyDeleteYou write so well :)
बहुत सुन्दर अनु जी.आखिरी अंतरा न हो तो...?
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
ReplyDelete:) :) सुन्दर!!
ReplyDeleteअगर कोई खुद से मिलकर खुश या दुखी हो जाये तो ये पक्का है कि अभी खुद से नहीं मिला।
ReplyDeleteहां,हूं मैं!
ReplyDeleteअँधेरे में ,रौशनी की चमक ....
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ReplyDeletehttp://www.hamarivani.com/news_details.php?news=41
टीम हमारीवाणी
वाह ... भावमय करते शब्द बहुत ही अच्छी प्रस्तुति..आभार
ReplyDeletei want to copy n paste the comment u left on my blog:
ReplyDelete"just saw ur blog n fell in love.." :-)
क्या बात है
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteक्या वजूद है तुम्हारा..
ReplyDeleteक्या सच है तुम्हारा...
स्वयम को खोजना ...फिर परखना ....और सँवारना ...यही जीवन प्रक्रिया है ....!!
सुंदर रचना ...
शुभकामनायें अनु ..
I want to choose the right words..
ReplyDeletesaying "Beautifully compressed in a dazzling way" would be substandard. Great lines... Loved it.
Sniel
बनावटीपन और चकाचौंध से परे
ReplyDeleteबेनकाब अपने चेहरे को
पहचानते हो क्या???
..these wonderful lines correspond amazingly to the concluding lines of my "Bonsai"!
A very thoughtful poem indeed, Anu! Thank you!
wah nice thoughts.
ReplyDeleteतारों के उस पार एक दुनिया है
महसूस करते दिलो के तार
धड़कन सुनना होगा चुपचाप
सुनाई देगी एक जैसी पदचाप
nice poem...self revealation ...not easy in this hectic life with so much expectation...nevertheless quality post
ReplyDeleteदुखी हूँ , मैं अभी भी स्वयं से नहीं मिल पाया | :(
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