आज थोडा पीछे लिए चलती हूँ आपको...डायरी का वो पन्ना जो फीका पड़ गया है....कभी कभी जीवन बड़ा व्यवहारिक हो जाता है...रूमानियत बस कहीं डायरी के पन्नों में ही दबी रह जाती है....
मिला था मुझे वो अपनी संगीत कक्षा में...उसको देखते ही मन वीणा के तार झंकृत हो गए थे...तारों का कंपन महसूस करती जब जब उसको देखती....लगता कहीं दूर कोई बांसुरी बजा रहा है...क्लास में उसके आते ही मन सरगम भूल जाता.....और जाने कौन सा सुर पकड़ लेता...
वो भी कुछ कम नहीं था...कभी देखता कहीं और ,फिर मेरे करीब आता....और कभी मुझे अनदेखा कर कुछ हौले से गुनगुनाता...मैं राग -रागिनियाँ सीखती...ह्रदय उसके गीत गाता...मुझे दादर/कहरवा कम उसका स्वर अधिक भाता.
मोहब्ब्त की पहली दस्तक थी वो....जो स्वरलहरी बन गूंजी थी मेरे मन में और आँगन में शहनाई बजवा कर ही मानी. ..
उसका होना जीवन में, बजाता है जलतरंग...
सप्तसुरों से सजा हुआ, ये उसका मेरा संग....
-अनु
-अनु