इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Wednesday, February 29, 2012

जीवन संगीत...........

आज थोडा पीछे लिए चलती हूँ आपको...डायरी का वो पन्ना जो फीका पड़ गया है....कभी कभी जीवन बड़ा व्यवहारिक हो जाता है...रूमानियत बस कहीं डायरी के पन्नों में ही दबी रह जाती है....


मिला था मुझे वो अपनी संगीत कक्षा में...उसको देखते ही मन वीणा के तार झंकृत हो गए थे...तारों का कंपन महसूस करती जब जब उसको देखती....लगता कहीं दूर कोई बांसुरी बजा रहा है...क्लास में उसके आते ही मन सरगम भूल जाता.....और जाने कौन सा सुर पकड़ लेता...
वो भी कुछ कम नहीं था...कभी देखता कहीं और ,फिर मेरे करीब आता....और कभी मुझे अनदेखा कर कुछ हौले से गुनगुनाता...मैं राग -रागिनियाँ सीखती...ह्रदय उसके गीत गाता...मुझे दादर/कहरवा कम उसका स्वर अधिक भाता.
मोहब्ब्त की पहली दस्तक थी वो....जो स्वरलहरी बन गूंजी थी मेरे मन में और आँगन में शहनाई बजवा कर ही मानी. ..
उसका होना जीवन में, बजाता है जलतरंग...
सप्तसुरों से सजा हुआ, ये उसका मेरा संग....
 -अनु

Tuesday, February 28, 2012

जड़ें........

जाने क्या सोच कर चली आई थी गाँव ...और यहीं की होकर रह गयी...शहर की समस्त सुविधाओं को छोड  इस छोटे से मकान में रहना बहुत  भला लगा..ये घर कब से खड़ा है इस सुदूर सुन्दर पहाड़ी पर...अकेला...


मेरे बाबा का जन्म हुआ था इस घर में...हम जब भी गाँव जाते पिताजी वहाँ हमें अवश्य ले जाते...पहाड़ी चढ़ते हम कभी थकते नहीं थे..किवाड की सांकल खुलते  ही बाबा भी चहक उठते थे...
कितना कलपा होगा उनका मन,अपने घर अपनी मिट्टी को छोड़ते  हुए...जब आखरी बार उन्हें गाँव की ज़मीन  बेचनी पड़ी तब वे मुट्ठी भर मिट्टी ले आये थे अपने साथ.....और जब तब चोरी-चोरी उसकी खुशबु  उसका स्पर्श महसूस करते रहे....
तब से सोचा करती थी कि जीवन के किसी पड़ाव पर एकाकी महसूस करुँगी तो यहाँ अपने पैतृक घर में चली आउंगी...जिसकी चौखट पर आज भी दादाजी के हाथ से लिखी मेरे बाबा की जन्म तिथि मुझे यादों के उपवन में ले जाती है...
जानती हूँ कि यहाँ मैं खुद को कभी अकेला नहीं पाऊँगी ..
अकेली हूँ भी कहाँ....बुजुर्गों की याद ,उनके आशीर्वाद की भीड़ मुझे घेरे रहती है...


शहर की भीड़  में जो अकेलापन था वो अब नहीं....
आखिर कब तक बनावटी  फूलों की महक से जी बहलाती...

-अनु 




Friday, February 24, 2012

झूठा ही सही...पल भर को कोई हमें प्यार कर ले.

कल रात......
एक सफ़ेद बादल का टुकड़ा खिडकी से भीतर चला आया.....मेरे सिरहाने बैठा कुछ पल को....फिर हौले से बाहें पकड़ कर ले चला मुझे अपने साथ......मैं भी जैसे उतावली थी कहीं भाग जाने को.....चल पड़ी साथ उसके,नील गगन में कहीं......आसमां के बिछौने में सुला दिया दिया उसने मुझे...खुद तकिया बन गया मेरा.....बहुत सुखद था यूँ किसी का प्यार करना...किसी का ध्यान पूरी तरह अपनी ओर पाना..
मीठी सी नींद आने लगी...टिमटिमाते तारों से कहीं खलल ना पड़े,सो उसने उन्हें छुप जाने का हुक्म दिया.....कहीं चाँद के पीछे...कितनी परवाह है उसे मेरी........
फिर वो सुनाने लगा किसी सुन्दर परी जैसी राजकुमारी की कहानी....जो अभी अभी  भाग गयी है अपने महल से किसी आवारा बादल के साथ......
मैंने कहा सुनो....मुझे जगाना नहीं....इसी ख्वाब के साथ सोने दो मुझे....सदा के लिए......ख्वाब में ही सही,कभी  मोहब्ब्त का एहसास तो करूँ.....

"खिड़कियाँ देर से खोलीं,ये बड़ी भूल हुई 
हम तो समझे थे,कि बाहर भी अँधेरा है." 













-अनु 








Thursday, February 23, 2012

खेल....

आपके सामने है मेरे दिल का एक पन्ना ....
धीरे धीरे सारी किताब पढ़  लेंगे...तब जान भी जायेंगे मुझे....कभी  चाहेगे...कभी नकारेंगे... यही तो जिंदगी है...!!!


अपनी जिंदगी के साथ बड़ी बद्सलूकियाँ की मैंने...कभी कहा नहीं माना उसका.तंग करती रही उसको सदा......नयी नयी चुनौतियां देती रही .
उसके प्रति क्रूरता शायद मेरा स्वभाव बन गया था...और नियमों को तोडना मेरी आदत.
ऐसी विचित्र हरकतें करती मैं खुद कौन सा सुखी थी..आखिर जिंदगी मेरी थी..जब उसे चैन नहीं तो मुझे कहाँ चैन मिलता???
मगर बहुत हुआ अब!!जिंदगी को तंग किया सो किया...अब मौत को ज़रा ना सताऊंगी.जिस रोज देगी दस्तक,उसी पल बिना गिला-शिकवा किये  चल दूँगी उसके साथ.
जिंदगी को आखरी शिकस्त देने का ऐसा सुनहरा मौका मैं  चूकुंगी भला!!!!

-अनु


नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...