इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, July 18, 2013

रूह

तुम्हारी गुलामी मैंने स्वीकारी
क्यूंकि तुम्हारी ख़ुशी इसी में थी....
और इसमें मेरा कुछ जाता नहीं था
बेशक बेड़ियों ने मुझे जकड़ रखा था मगर
रूह आज़ाद थी मेरी
और वक्त भी आज़ाद था...

पीछे छूट रहा था वक्त और आगे बढ़ती जा रही थी मैं
बीच में तुम खड़े थे स्थिर ,गतिहीन,संतुष्ट
बेड़ियों में जकड़े मेरे शरीर को देखते !!

ज़ाहिर है
इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!
~अनु ~

70 comments:

  1. बहुत बढिय प्रस्तुति..अनु ..

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    1. SUNDAR BHAV UKERE HAI AAPNE ,YAHI KATU SATY HAI JEEVAN KAA

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  2. ज़ाहिर है
    इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!..........सही बहुत खूब ..प्रेम कैसे आता जब मंजिल और रस्ते ही अलग मायने में थे ..बेहतरीन अभिव्यक्ति अनु


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  3. अगर प्रेम साथ होता थी बेड़ियों का अहसास ही नहीं आता मन में

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  4. रूह आज़ाद... बेड़ियों से युक्त शरीर... और उसे देख संतुष्ट 'तुम'
    इस विरोधाभास में प्रेम कहाँ...!

    निश्चित ही
    'इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!'

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  5. बहुत बढिय प्रस्तुति.

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  6. बहुत बढिय प्रस्तुति.

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  7. sundar rachna....jakadna prem nahi....unmukut kar dena prem hai......

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  8. बस समझौता ही बन कर रह गयी ज़िंदगी ..... संवेदनशील प्रस्तुति

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  9. समझौता...जाहिर है इसमें प्रेम कहीं नहीं है.
    बढ़िया लिखा है अनु

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  10. अगर प्रेम होता तो वहाँ बेड़ियों की कभी कोई बात ही नहीं आती

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  11. वाह ! अनु जी ..आह निकाल दिया..

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  12. बिलकुल ठीक ऐसी कहानियों में अक्सर किरदार खुद ही गुम हो जाया करते हैं...
    बेहतरीन भावभिव्यक्ति...

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  13. बहुत सही लिखा है आपने .

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  14. बहुत सुन्दर ..............प्रेम होता तो रूह बेचैन नहीं होती ................

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  15. जाहिर है इस कहानी में
    प्रेम ने कोई किरदार
    नहीं निभाया...
    बहुत प्रभावपूर्ण रचना।

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  16. जाहिर है इस कहानी में
    प्रेम ने कोई किरदार
    नहीं निभाया...
    बहुत प्रभावपूर्ण रचना।

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  17. bahut hi lajawab prastuti.............

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  18. पीछे छूट रहा था वक्त और आगे बढ़ती जा रही थी मैं
    बीच में तुम खड़े थे स्थिर ,गतिहीन,संतुष्ट
    बेड़ियों में जकड़े मेरे शरीर को देखते !!

    ज़ाहिर है
    इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!

    बहुत ही प्रभावशाली रचना.

    रामराम.

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  19. बेहतरीन भावभिव्यक्ति... प्रभावपूर्ण!

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  20. Amazingly written as if coming from the as deep as ocean...
    WOW!!!

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  21. ऐसी लाइने आज़ाद रूह ही रखने वाली लिखने की हिम्मत
    कर सकती है अनु जी...
    बधाई !

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  22. संजीदा प्रेम की पेंचिंदगी , बढ़िया है.

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  23. क्या खूबसूरत रचना लिखी... बधाई !!

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  24. रूह की लिखी ... रूह ने महसूस की...
    बहुत सुंदर रचना अनु!
    <3

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  25. बहुत उम्दा,रूहानी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  26. प्रेम बंधने को विवश तो कर सकता है पर रुकने को नहीं
    बेहतरीन
    साभार

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  27. जहां प्रेम न हो वहाँ रूह ठहरती भी कैसे? बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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  28. बड़ियाँ भी और प्रेम का किरदार भी नहीं तो जिंदगी जी कहाँ .....?
    बस काटी न .....?

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  29. जिंदगी निरंतर आगे बढ़ते रहने का नाम है। जो थम गए तो कुछ नहीं। बढ़िया रचना ।

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  30. सच कहा है । छोटी कविता में बडे विस्तृत भाव ।

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  31. क्या बात, बहुत सुंदर
    बहुत सुंदर


    मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
    MEDIA : अब तो हद हो गई !
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form

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  32. ज़ाहिर है....
    रूह को आजाद होना ही चाहिए..प्रेम में भी ...प्रेम से परे भी....
    मेरा नया ब्लॉग अब ये है ...

    rahulkmukul.blogspot.com

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  33. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  34. the fight between mind, body and soul..
    it just goes on and on

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  35. बहुत अच्छी रचना, बहुत सुंदर

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  36. ज़ाहिर है
    इस कहानी में प्रेम ने कोई किरदार नहीं निभाया !!

    एकदम - था कहाँ वह निष्ठुर प्रेम ?

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  37. एक मृग-मरीचिका, के पीछे भागते, अपने ही तर्कों के सहारे खुद को सही ठहराते....केवल बाहरी आवरण देख आकर्षित हो रहे या फिर बड़े-बड़े भारी-भरकम शब्दों के जाल में उलझकर उसी को सच मान बैठे हैं----------- कोई किसी को जबर्दस्ती तो गुलाम नहीं बना लेता और ना ही कोई ऐसा सोच भी सकता है, अगर उसकी खुशी का ख्याल था तो दिल से भी अपनाना था, अगर कोई इंसान भावुक और संवेदनशील ना हो तो, नहीं महसूस कर सकता की जीवन और उसकी सच्चाई यही नहीं जो हम जिये जा रहे हैं ... भौतिकतावादी सोच के साथ केवल अपने अहम और उसकी संतुष्टि के जीना, कभी पसंद नहीं किया मैंने, समर्पित प्रेम की परिभाषा में तो ऐसे विचार आ ही नहीं सकते जैसे कि उक्त कविता में दर्शाये गए हैं ... फिर भी किसी को पसंद हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता है, समय .... जी हाँ समय ... समय किसी के लिए नहीं रुकता है, लोग आते हैं और जाते हैं, किसी के भी रहने और ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, ....ये पूरा का पूरा ब्रह्मांड मेरे लिए एक सपने से ज्यादा कुछ नहीं........ कोई दुःख या रंज नहीं...मुझे अहसास है कि नश्वर है शरीर ....परमात्मा एक विशाल प्रकाश पुंज है, और आत्मा उसका बहुत ही छोटा सा अंश मात्र.... !! हरि ॐ तत्सत !!

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  38. Your comment will be visible after approval......... सच ये भी कि मेरा कमेन्ट पब्लिश हो संभावना एक परसेंट ही है !!!! जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है ... चलते जाना ही ज़िंदगी ......... "

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  39. सुन्दर रचना

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  40. जीवन के कई सत्य में से एक ये भी है ....
    बहुत मार्मिक

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  41. उनके पास ताकत होती तो वो रूह भी कैद कर लेते, एक कहानी बचपन में सुनते थे। राक्षस के पास राजकुमारी है लेकिन उसकी रूह राजकुमार के पास है।

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  42. क्या बात है...बहुत उम्दा!!

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  43. बहुत सुंदर
    यहाँ भी पधारे ,

    हसरते नादानी में

    http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

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  44. स्मृतियों का भावपूर्ण कैनवाश
    बहुत गहन और सुंदर अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति-----

    सादर

    आग्रह है
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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  45. कभी कभी सपना लगता है, कभी ये सब अपना लगता है ..... मैंने कभी भी पूरी तरह से काल्पनिक कुछ भी नहीं लिखा .... और ना ही ऐसा पढ़ना पसंद करता हूँ जिसमे लिखने वाले इंसान की विचारधारा और उसके स्वभाव की झलक ना दिखे .... ये आभासीय दुनियाँ है यहाँ केवल दो परसेंट इंसान ही ऐसे लोग होते हैं जो बिलकुल खुले दिल के होते हैं और अपने बारे में कुछ भी नहीं छिपाते हैं और ना ही चैटिंग को एक बुराई के रूप में लेते हैं खुले दिल के होते हैं .... मुझे भी कुछ ऐसे लोग मिले फेसबुक पर जिन्होने अपने अच्छे व्यवहार से मेरा दिल जीत लिया .... मुझे भी सुखद एहसास हुआ कि वर्चुअल दुनियाँ में भी अच्छे इंसान हैं .... "
    धन्यवाद आपका अनु जी, आपने मेरी आशंका को गलत साबित किया है, मेरे कमेंट्स प्रकाशित करके, एक बात कहें आपसे, दोस्त वही जो हमारे मन की बात और हमारी भावनाओं का ख्याल रखे, और हम उसकी भावनाओं को पूरा सम्मान दें, गलती इंसान से ना चाहते हुए भी हो जाती है, और ये कोई अपराध भी नहीं है, अगर हमसे कोई गलती किसी के प्रति होती है तो हम कभी नहीं हिचकते अपनी गलती स्वीकार कर लेते हैं.... जय श्री कृष्ण !!!!!
    शुभ-रात्रि !!!!!!

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  46. बहुत ही सुन्दर रचना, शानदार प्रस्तुति!
    स्नील शेखर

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  47. बहुत सुंदर !
    ़़़़़़

    वैसे भी आदमी तो सम्भलता नहीं रूह को कौन संभाले बबाल अपने लिये मोल लेना भी नहीं चाहिये (अन्यथा ना लिया जाय अपने लिये ये है क्योंकि अपनी कैमिस्ट्री ऎसी ही है :)

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  48. अनु , गुरु पूर्णिमा की शुभ-कामनाएँ आपको ... जो अब के सतगुरु मिले, सब दुःख आँखों रोये | चरणों ऊपर सिस धर, कहो जो कहना होए ||

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  49. अनु जी ... शुभ-संध्या !!!!!! अब हम आपकी पिछली सभी रचनाओं को एक-एक करके पढ़ेंगे, जब भी समय मिलेगा और आपकी लिखी हर पंक्ति की आलोचना और समालोचना, लिखेंगे, आपने मेरा हौसला बढ़ाया है, मेरे कमेंट्स पब्लिश करके .... जय श्री कृष्ण !!!!!

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  50. बढिय प्रस्तुति.अनु ..सुंदर अनुभूतिसुंदर अनुभूति.

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  51. बेड़ियों मे बेशक
    छूट रहा वक्त शुभ-कामनाएँ लिए.

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  52. प्रेम का कोई किरदार नहीं था ... ये प्रेम ही प्रेम था हर जगह ...
    या शायद किसी एक जगह तो था ही ...

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  53. bhavon ki aviral bahati hui saras salil dhara si anubhuti......atyant sunder avam nischal....

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  54. बेहतरीन अभिव्यक्ति...हमेशा की तरह

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  55. kai jindgi kat li jati hai prem ke bina .....katu satya .....sidhe shabdon men ...

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  56. देह जकडी लेकिन रूह आजाद ......
    कितनी स्त्रियां कर पाती हैं ये ।

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  57. mere shabdon se pare hai iski tarif karna .....chhu gaye shabd dil ko

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  58. बार बार पड़ने को मन कर रहा है इसे ...

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  59. Bohot pasand aayi mujhe aapki kavitaye ma'am :)

    http://simplysaid22.blogspot.in/

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  60. स्त्री का समर्पण
    पुरूष की उदासीनता
    सम्बन्धों में प्रेम का अभाव
    बहुत बढि़या प्रस्तुति

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